जलधि विशाल तरंगित ऊर्मि नीलांचल नाद झंकृत धरणी कल-कल झिन्झिन झंकृत सरिता पारावार विहारिणी गंगा तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी शंकर जटा विराजे वाहिनी शुभ्रोज्ज्वल चल धवल प्रवाहिनी मुनिवर कन्या हे ! भीष्म जननी पतित उद्धारिणी जाह्नवी गंगे त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे महिमा तव गाये धरनीचर मोक्ष प्राप्त हो जाए स्नान कर हरिद्वार काशी पुनीत कर बहे निरंतर कल-कल छल-छल सागर संगम पावन पयोधि गोमुख उत्स स्थान हे वारिधि सर्वदा कल्याणी द्रवमयी मोक्षदायिनी जीवनदात्री बारम्बार नमन हे जाह्नवी वरदहस्त रखना करुणामयी |
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शानदार रचना
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
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सुघड़ शब्दों में कलकल बहती कविता।
जवाब देंहटाएंMaa Gange ka sundar manoram jhalkiyan padhkar man anandit ho chala..
जवाब देंहटाएंsundar prastuti hetu abhar!
Pawan Pavitra Maa Ganga pr sunder rachna ke saath sunder prastutikaran...aabhar
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दयात्रा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजय हो गंगा मैय्या की।
भक्तिमय कृति !
जवाब देंहटाएंबेहद अच्छी रचना,जय माँ गंगे !
अपने विचारों से अवगत कराएँ !
अच्छा ठीक है -2
बहुत सुंदर रचना आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर तरंगित करती रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रार्थना... अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत ही सुंदर रचना...लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह आपकी प्रस्तुति से मन में पवित्र भाव उदय हो गए है.
जवाब देंहटाएंपढकर ऐसा लगता है कि दिव्य संगीत झंकृत हो रहा हो कानों में.
बहुत बहुत आभार.