कविता
ज़िन्दगी की तारीखें तो पहले से ही तय है हमें तो बस उन तारीखों में जिए जाना है
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मार्च 27, 2010
मन की धुंदली आँखों से.........
मन की धुंदली आँखों से जाना जीवन का सच क्या है ,
न झूठा है न सच्चा है बस अपनी धुन में बढ़ता है
ऊपर से देखो दुनिया तो झगड़े में पड़ा है जगत सारा
मन की आँखों से देखो तो ये झगड़े प्यार के लिये सारा
ये आतंक की दुनिया है कहने दो उसे जो कहता है
मैं जानू ये आतंकी है प्यार का मारा बेचारा
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