सौ साल पहले भी मैंने तुम पर कविता रचा था सौ साल बाद आज तुम पढ़ने आई II आँखों की भाषा जो मैंने उस समय पढ़ लिया था सौ साल बाद आज तुम कहने आई II जिन आँखों को आंसुओं से धोया था हमने उस वक़्त को इशारों से रोका था जो हमने धूप छाँव सी ज़िन्दगी में अब बचा ही क्या है ? सौ साल बाद आज तुम रंग भरने आई II सांस लेने की आदत थी..... लेता रहा तक सदियों से बरसों से आदतन जीता रहा अब तक ख़ामोशी को बड़ी ही ख़ामोशी से आज जब गले लगाया सौ साल बाद आज वो रिश्ता तुम आजमाने आई II |
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