आसमान का रंग हो आज चाहे फीका आज बारिश भी न कर पाये तन को गीला फूल चाहे आज खिले अधखिले से पर आज तुम मिले आज ही वसंत !! चाहे मैं बस न पाऊँ तुम्हारी यादों में मेरा पूर्ण प्रेम न मिले इतिहासों में मेरा तुम्हारा प्रणय है समय से परे नयन भर देखा तुम्हे आज ही आया वसंत !! चाहे दिन हो कितने ही घन से भरा चाहे सावन बारिश से भर दे ये धरा हाथ पकड़ कर हम तुम यूं ही निकल पड़े आज हम नहीं एकाकी वसंत है दिन-रात्रि !! मेरे स्वप्न को कोई सुने -ना-सुने शब्द उसे दूंगी चाहे लय न बंधे ह्रदय आक्रान्त हो चाहे कितने ग़मों से मेरे स्वप्न द्रष्टा हो तुम वसंत न जाना तुम !! |
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (05-04-2014) को "कभी उफ़ नहीं की": चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1573 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चैत्र नवरात्रों की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आत्मसात करती समर्पण. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत है यह वसंत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली बहुत ही बेहतरीन रचना लगी यह अनामिका जी, बहुत खब...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति... जड़ता में ऊष्मा का संचार है वसंत… फिर लौट कर आएगा वसंत...
जवाब देंहटाएंसलाम। बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आया हूं। व्यस्तताओं और उलझनों में फंसा मन आपकीकविता में इस कदर उलझ गया कि खुद को भूल गया। बहुत ही अच्छी कविता। बधाई।
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