अगस्त 12, 2013

अकेले चले थे.....














अकेले चले थे , तन्हां सफ़र था
मुसाफिर मिले जो... राहें जुदा थी 
लम्बी सी सड़कें और दिन पिघले-पिघले 
तन्हाई के जाने ये आलम कौन सी ?

पेड़ों के  कतारों की बीच की पगडण्डी 
कब से न जाने खड़ी है अकेली 
सुनसान राहें... न क़दमों की आहट 
इंतजार है उसको भी न जाने किसकी !!

बस सूखे पत्तों की गिरने की आहट 
बारिश की टप-टप चिड़ियों की चहचहाहट 
दाखिल हो जाता हूँ अक्सर इस सफ़र में 
है झींगुर के शोर औ पत्तों की सरसराहट !!

कब तक मैं समझाऊँ  इस तन्हां  दिल को
नज्मों से बहलाए - फुसलाये पल को
तन्हाई का साथ छुडाना जो चाहूँ
भीड़ अजनबियों का नहीं भाता है मन को !!

गर कोई बिखरी सी नज़्म मिल जाए
कतरन-ए -ख्वाव पर पैर पड़ जाए
बज़्म-ए-याद से कुछ यादें  दरक जाए
तनहा जीने का फिर सबब मिल जाए  !!








9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी अभिव्यक्ति दी है - अक्सर ही छा जाती है ये उड़ी-उड़ी-सी मनोदशा!

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  3. गज़ब के एहसास पिरोये हैं इस लाजवाब नज़्म में ...

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  4. वाह बहुत खूब


    स्‍वतंत्रता दि‍वस की शुभकामनाएँ

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  5. अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
    आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
    सादर...!

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (19.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल किया गया है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} (25-08-2013) को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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