जुलाई 09, 2012

धन्य हुई मै


आजन्म संगति की अपेक्षा प्रिये-
गुण--दोषों सहित स्वीकार्य 
हुई हूँ--धन्य हुई मै ,
खींचा है आपके प्रेम ने मुझे 
सींचा है आपने  सपनो को मेरे 
प्रेम की ये परिभाषा 
आपने है सिखाया 
प्रिये ! हमारा अस्तित्व इस 
दुनिया में रहेंगे क़यामत तक 
शपथ है मेरी मै  न जाऊंगी 
रह न पाऊँगी 
देखे बिना आपके एक झलक 
सात जन्मो से बंधी हूँ मै 
आगे सात जन्मो तक 
सात फेरे के बंधन है 
मै न जाऊंगी 
तोड़कर ये बंधन 
प्राण न्योछावर है आप पर 
आपसे ही सीखा है 
प्रेम की परिभाषा 
धन्य हुई मै ।।

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर समर्पण....सात्विक प्रेम....

    सुन्दर रचना

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. समर्पण भाव व्यक्त करती
    बहुत सुन्दर,प्यारी रचना...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  3. चिर समर्पण का अजस्र प्रवाह

    जवाब देंहटाएं
  4. निःस्वार्थ प्रणय,
    बहुत सुन्दर....!!

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रेम और समर्पण के भाव लिए ... सातों जन्मों कों मुभाते हुवे लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  6. गहन भाव लिए बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया अभिव्यक्ति ...
    यह रचना कामयाब है !

    जवाब देंहटाएं