मन के तम को दूर कर
गम को मन से परे कर
हृदय से हृदय मिला ले
आज मित्रता के गीत गा ले !
अग्निशापित हृदय से
राग-द्वेष के कलंक से
खुद को तू स्वतंत्र कर
मित्रतादार्श स्थापित कर !
भेद मन का मिटा दे
देह-नश्वर जान ले
अश्रु बूँद न व्यर्थ कर
मित्रता दृढ़ता से धर !
बहुत सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमित्रता की ये धार यूँ ही बनी रहे
जवाब देंहटाएंWaaah.... Bahut khoob!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंShed all negative feelings and place the positivity in heart. Lovely poem!
जवाब देंहटाएंके बारे में महान पोस्ट "मित्रता दृढ़ता से धर !"
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अनामिका जी
जवाब देंहटाएंखुदा जो देता रहा मुश्किलें हरदम
मेरा हौसला मेरी ताकत हो जाने वाले
दोस्त भी उसने दिये साथ निभाने वाले