जो आईना सा मुझे अक्स दिखाए आंखोँ के कोरो में छुपी लालिमा मे दिल का छुपा जख्म दिखाये वो खुद्दारी ही थी जो तेरी यादों से हमेशा जूझता रहा अपने घर के दरो दीवार मेँ हीं अपने साये को टटोलता रहा वो मैं ही था जो वफा पे वफा किए जा रहा था बिना कसूर के बरसों से ये दिल ज़माने का ज़ख़्म लिए जा रहा था वो बारिश न मिली जो झरने सा तन भिगो सके मन के अन्दर के तूफाँ को दरिया सा राह दिखा सके |
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मार्च 16, 2015
वो शख्स न मिला ••••••••
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...