तुम अकेले ही नहीं हो -
चॉंद तारे भी सहित
पाँव के नीचे जो धरती है
वो राह दिखलाये
मोह माया त्याग दे
कहीं ये न तुझे भरमाये
दंश भूखे पेट की
तुझको समझना है अभी
बेघरों का आशियाना
तुझको बनना है अभी
शून्य में ही भ्रमण करना
नहीं है नियति तेरा
काल-कवलित सूव्यवस्था-
जीवंत करना है अभी
दिशाहीन तुम यूँ न भटको
करो चुनौती स्वीकार
हिम्मत करो ऐ राहगीर
लहरों से डरना है बेकार
मोतियों को सीपियों से
ढूंढ लाना है कठिन
पर ये मोतियाँ क्या मिलता -
है नहीं बाज़ार मे
प्रबल झञ्झावात का भी
सामना करते है खग
नीड़ पुनः निर्माण हेतु
ढूँढ ही लेते तृण-पत्र
हिला दे सागर की गहराई
वो हिम्मत तुम मे है
हुंकार गूँजे दस दिशाओं में
वो गर्जन तुम में है
बेसहारों का सहारा
बन ही जाओ रे पथिक
लक्ष्य को पाना सरल गर
ठान लो मन मे तनिक
कर्म करना है निरंतर
फल की चिंता है कहाँ
अनचाहा या मनचाहा
परिणाम डरना है कहाँ
बंधन अनैतिकता का तोड़
चिंतन-मनन से नाता जोड़
अतीत के विष को वमन कर
नया अध्याय तू पढ़
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जून 27, 2014
नया अध्याय तू पढ़
जून 13, 2014
बिंब
झरनों सा गीत गाता ये मन
सरिता की कलकल मधुगान
सृष्टि है.... अनादि-अनंत
भावनाओं से भरा है ये प्राण
वरदान है कण-कण में छुपा
दुःख-वेदना से जग है भरा
पर स्वर्ण जीवन से भरा है
नदी-सागर और ये धरा
गूंजता स्वर नील-नभ में
मोरनी … नाचे वन में
गा रहा है गीत ये मन
देख प्रकृति की ये छटा
सोंधी महक में है एक नशा
चन्द्रमा का प्रेम है निशा
स्वप्नमय है ये वसुंधरा
दिन उजला रात है घना
देख श्याम घन गगन में
ह्रदय-स्पंदन.... बढे रे
नृत्य करे मन मत्त क्षण में
सुप्त नाड़ी भी जगे रे
कल-कल सरित गुंजायमान
नद नदी सागर प्रवाहमान
पुष्प सज्जित है उपवन
और धरित्री चलायमान
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जून 06, 2014
इशकनामा
जिस्मों से परे दो रूहों को- मिलाता है इश्क़ जीते है साथ और जीने की ख़ुशी - दिलाता है इश्क़ प्रेम दरिया में डूबकर भी प्यासा रह जाता है इश्क़ समंदर सी गहराई औ नदी सा- मीठा पानी है इश्क़ बादल गरजे तो बूँद बन जिस्म भिगोती है इश्क़ प्रेम-ज्वार परवान तो चढ़े पर भाटा न आने दे इश्क़ अनहद-नाद-साज़ प्रेम-गह्वर से प्रतिध्वनित है इश्क़ मंदिरों में घंटी सी बजे और मस्जिदों में अजान है इश्क़ इश्क़ इंसान से हो या वतन से मिटने को तैयार रहता है इश्क़ ख़ुश्बुओं से ग़र पहचान होती गुलाब की शोख रवानी है इश्क़ ख्यालों में सवालों में.....जवाब ढूंढ लाती है इश्क़ आसमान रंग बदले चाहे पड़ता नहीं फीका रंग-ए-इश्क़ सिमट जायेगी ये दुनिया गर मिट जाए नामों निशां-ए-इश्क़ बीज जो पनपते ही रंग दे दुनिया वो खूबसूरत तस्वीर है इश्क़ |
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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