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मार्च 30, 2014

फागुन का रंग





पाखी उड़ जा रे 
बहती हवा में महकी फ़िज़ा में, 
कल-कल बहती सरित-झरनों में, 
शीत का अंत है ये !!!

पीले हरे फूलों के रंग- 

पलाश-ढाक के पत्तों के संग,
भ्रमर गुंजायमान,वसंत के ढंग,
फागुन का रंग है ये !!!!

प्रेम-प्लावित ह्रदय अनुराग; 

आह्लादित मन  गाये विहाग; 
ऋतुराज ने छेड़ा वसंत राग- 
फागुन का दंश है ये !!!!

तारों भरा गगन रजनीकर-

तारक-दल-दीपों से उज्जवल, 
नभ पर जगमग जलता प्रतिपल 
फागुन का गगन है ये !!!

पाखी तेरा नीड़  सघन;  

डाली-डाली शाखा उपवन; 
सुखी तेरा संसार निज-जन- 
फागुन का बयार है ये !!!





मार्च 22, 2014

जीवन कथा



अकेला ये मन सोचे हरदम
सुख-दुख का झमेला जीवन
मारे दंश फिर भी सहे जाये
यह ही है हृदय का दमखम ।।

नहीं कोई मरहम समय अति निर्मम
खारे आँसू भी न करे दर्द कम 
मन बहलाने को जीते है हम
देख कर ये धरा-प्रकृति का संगम ।।

आह! मुख से न निकले है कभी
मनुष्य है...ऐसे ही जीते है सभी
दुःख-सुख है पहिया जीवन का
जान लिया है दिल ने जी रहे है जब ही।।

पशु-पक्षी औ इस धरा के प्राणी
गत जीवन मे रची है कहानी
विकार नहीं संवेदना है ये
है हमने भी अब जीने की ठानी ।।








मार्च 12, 2014

रंगीन आखर



स्याही सी है ज़िन्दगी
लिखती मिटाती उकेरती
कुछ भी ये कह जाती
कागज़ों पर बसती ज़िन्दगी

रंगीन सपनों को कहती
सुख-दुःख में है उलझाती
पाती या फिर हो फ़साना
सुलझाती है ये ज़िन्दगी

सादा कागज़ सा ये मन
उस पर  ये रंगीन आखर
जाने क्यों नहीं छिपता है
बयाँ हो जाती ज़िंदगी

अफ़साने कितने अधूरे
अनसुने राज़ गहरे
आइना है ये कागज़
आखर बनके ये उभरे

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