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फ़रवरी 27, 2014

विविधा


ईश्वरीय प्रेम। …।
जग में है सब अपने
मुक्ताकाश , पंछी , सपने
सुगन्धित धरती ,निर्झर झरने
आह्लादित तन मन
प्रेमदान का स्वर्गीय आनंद।।

प्रकृति चित्रण। ………
धरा,सरिता,औ' नील गगन
प्रस्फुटित पुष्प,वसंत आवागमन,
दारुण ग्रीष्म,शीत,और हेमंत
खग कलरव - गुंजायमान दिक्-दिगंत,
प्रकृति से परिपूर्णता का आनंद।।

प्रेम की विसंगतियां .......
जनमानस से परिपूर्ण इस जग में
एकाकीत्व का आभास रग - रग में
रहता है ये  आतुर मन प्रतीक्षारत
एकाकीत्व लगे अपना सा ।



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