पाखी उड़ जा रे बहती हवा में महकी फ़िज़ा में, कल-कल बहती सरित-झरनों में, शीत का अंत है ये !!! पीले हरे फूलों के रंग- पलाश-ढाक के पत्तों के संग, भ्रमर गुंजायमान,वसंत के ढंग, फागुन का रंग है ये !!!! प्रेम-प्लावित ह्रदय अनुराग; आह्लादित मन गाये विहाग; ऋतुराज ने छेड़ा वसंत राग- फागुन का दंश है ये !!!! तारों भरा गगन रजनीकर- तारक-दल-दीपों से उज्जवल, नभ पर जगमग जलता प्रतिपल फागुन का गगन है ये !!! पाखी तेरा नीड़ सघन; डाली-डाली शाखा उपवन; सुखी तेरा संसार निज-जन- फागुन का बयार है ये !!! |
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फ़ॉलोअर
मार्च 30, 2014
फागुन का रंग
मार्च 22, 2014
जीवन कथा
अकेला ये मन सोचे हरदम
सुख-दुख का झमेला जीवन
मारे दंश फिर भी सहे जाये
यह ही है हृदय का दमखम ।।
नहीं कोई मरहम समय अति निर्मम
खारे आँसू भी न करे दर्द कम
मन बहलाने को जीते है हम
देख कर ये धरा-प्रकृति का संगम ।।
आह! मुख से न निकले है कभी
मनुष्य है...ऐसे ही जीते है सभी
दुःख-सुख है पहिया जीवन का
जान लिया है दिल ने जी रहे है जब ही।।
पशु-पक्षी औ इस धरा के प्राणी
गत जीवन मे रची है कहानी
विकार नहीं संवेदना है ये
है हमने भी अब जीने की ठानी ।।
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मार्च 12, 2014
रंगीन आखर
स्याही सी है ज़िन्दगी
लिखती मिटाती उकेरती कुछ भी ये कह जाती कागज़ों पर बसती ज़िन्दगी रंगीन सपनों को कहती सुख-दुःख में है उलझाती पाती या फिर हो फ़साना सुलझाती है ये ज़िन्दगी सादा कागज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर जाने क्यों नहीं छिपता है बयाँ हो जाती ज़िंदगी अफ़साने कितने अधूरे अनसुने राज़ गहरे आइना है ये कागज़ आखर बनके ये उभरे |
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