बादलों की गर्जना से
घटाएं उमड़-घुमड़ गयी,
चमन से सेहरे बने
धरा को देखती रही !!
फुहार जब कहर बना
जीवन लीलता गया ,
चंद पलों में हज़ार साँसें
सिसकियों में बदल गया !!
कहर बन बरस मेघ
लाशें निगलता रहा ,
नियति का खेल कैसा!
शहर उजड़ता रहा !!
तलाश है ज़िन्दगी को
साँसों का डोर थाम ले ,
सूनी-नंगी सड़कों पर फिर
कदमों को पहचान ले !!
नए पत्तों की आहट अब
जाने कब सुनाई दे ,
तारे जड़े आसमां औ'
चाँद कब दिखाई दे !!