वो चांदनी रात हम और तुम
फूलों से सजी बगिया उपवन
वो सपनो का झूला वो सजन का साथ
उन यादों को भूल न पाया ये मन !!
नभ पर था तारों की बारात
मन में बसी प्रेम का प्रभात
वो जगती आँखें और हमारा प्रेमालाप
रहता थे हम प्रेम-मगन न भूला ये मन !!
वो पूनम की चाँद था हाथों में हाथ
वो चांदनी रात में चले थे साथ
छेड़ गए यूं मन वीणा के तार
कहाँ भूल पाया ये मन ??
अब तो न वो दिन न वो रात
एकाकी जीवन और विरह का भार
दिया था तुम्हे जो प्रेम का उपहार
कैसे बिछ्डेगा तुमसे ये मन??