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अगस्त 15, 2012

बुझी हुई मशाल जला दो
















बुझी हुई मशाल जला दो 
आग की ज्वाला बढ़ा दो 
देश राग गुनगुनाकर 
एक नवीन ज्योत जला दो 

राग दीपक फिर है सुनना 
ताप में फिर से है जलना 
प्रलय आंधी भेद कर फिर-
से है तम को जगमगाना 

नेह-दीपक तुम गिराओ 
मन शहीदी को जगाओ 
ललकार जागा हर तरफ से 
विद्रोह पताका ...फहराओ 

भ्रष्टता का होवे अंत 
दंड मिलना है तुरंत 
हर लौ में विप्लव की हुंकार 
गृहस्थ हो या हो वो संत 

एक चिंगारी ही है काफी 
बढ़ेंगे हम मनुज जाति 
निर्भय-निर्भीक-निडर है हम 
आन्दोलन करना है बाकी 

जीतेंगे हम हर तरफ से 
कुरीतियों से-हैवानियत से 
लक्ष्य है सुराज लाना 
क्रांति-पथ या धर्मं-पथ से 

जाने न देंगे हम ये बाजी 
मरने को  हम सब है राजी 
केसरी चन्दन का टीका-
कफ़न सर पे हमने बाँधी 


अगस्त 05, 2012

रे बरगद ....!!!



उलझी निगाहें तेरी उलझी जटाओं में ,
रे बरगद तन के तू खडा कैसे राहों में -
तेरे  पनाह में पनपे न कोई पौधा रे ,
फिर भी तुझे पूजे जग के सब बन्दे रे !!


शाख तेरी मजबूत बाहों की सलामी दे 
फल न फूल केवल पत्तों की छाया ही दे 
माना  तेरी जटाओं में है औषध के गुण 
पूजा तेरी की जाती है गाकर कई धुन 


साक्षी है तू ही सावित्री पूजा की रे -
चिड़ियों गिलहरियों का तुझमे बसेरा है रे 
फिर भी न जाने क्यों तू ये न चाहे रे 
तेरी पनाह में पनपे कोई पौधा रे !!!

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