बुझी हुई मशाल जला दो
आग की ज्वाला बढ़ा दो
देश राग गुनगुनाकर
एक नवीन ज्योत जला दो
राग दीपक फिर है सुनना
ताप में फिर से है जलना
प्रलय आंधी भेद कर फिर-
से है तम को जगमगाना
नेह-दीपक तुम गिराओ
मन शहीदी को जगाओ
ललकार जागा हर तरफ से
विद्रोह पताका ...फहराओ
भ्रष्टता का होवे अंत
दंड मिलना है तुरंत
हर लौ में विप्लव की हुंकार
गृहस्थ हो या हो वो संत
एक चिंगारी ही है काफी
बढ़ेंगे हम मनुज जाति
निर्भय-निर्भीक-निडर है हम
आन्दोलन करना है बाकी
जीतेंगे हम हर तरफ से
कुरीतियों से-हैवानियत से
लक्ष्य है सुराज लाना
क्रांति-पथ या धर्मं-पथ से
जाने न देंगे हम ये बाजी
मरने को हम सब है राजी
केसरी चन्दन का टीका-
कफ़न सर पे हमने बाँधी