विचारों का बादल उमड़ते घुमड़ते आ ही जाते है शब्द जाल के उधेड़ बुन में जकड़ ही जाते है व्याकरण की चाशनी में डूब ही जाती है वर्ण-छंद के लय ताल में पिरो दी जाती है लेखनी की झुरमुटों से जब निकलता है विचार मात्र विचार ही नहीं वांग्मय बन जाता है कृति ये ज्योत बनकर जगमगाता है अपने प्रकाश से प्रकाशित कर सब पर छा जाता है तिस पर उसे गर स्वर में बांधा तो गीत बनता है सुर का जादू गर चले तो समां बंध जाता है विचारों को बढ़ने के दो पग मिल जाते है (इस तरह )सम्पूर्णता को प्राप्त कर वो झिलमिलाते है |
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मार्च 31, 2012
विचारों का बादल...
मार्च 25, 2012
मार्च 13, 2012
जिंदगीनामा
जीवन ये ख़ामोशी से सलवटों में समां जाती है कल और आज के बीच का बंटवारा हो न सका कई टुकडो में ज़िन्दगी को खुरचती चली जाती है तनहा गुज़र-बसर करना है इक नशा जीवन का फंदों के अक्स से खेलना है इक नशा प्रीतम का टुकड़ों में बँटी ज़िन्दगी को बुनते चले जाते है दरख्तों को आंसुओ से भरते चले जाते है मद्धिम सी रौशनी है तारो का जमघट है नहीं अब चाँद भी छोड़ चूका साथ ...उषा का स्वागत है अब हर रात चाँद और मै..... रिश्ते बुनते जाते है ज़िन्दगी के तहों से सलवटे हटाते जाते है |
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मार्च 04, 2012
हर पल
हर पल बेहतर था तेरे आने पर उम्मीद जग उठी थी तेरे रहने पर पर तूने जो जख्म दिया मेरे सीने में सपने बह गए सारे तेरे जाने पर रेत ले गया समंदर मेरे प्यार की दफन हो गया एहसास तेरे प्यार की ख्वाबो पर अब हक नहीं रहा कोई खो दिया मैंने तुम्हे एक बार फिर वीरान पड़ी है गली कूचे इस जहां में शाम ढल गयी है तेरी याद में जाने किस शहर में ढूँढू ठिकाना तेरा जी लिया उम्र सारा बेवफा तेरी ख्याल में |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...