दिल की तरकीब खास कुछ काम न आ या न दिल को मिला सुकून न मन को चैन आया दिल लहूलुहान हुआ आँखे रो रो कर रात काटे चाहत आपने ही थी जताई नाहक हमें बदनाम किया कदमो को हमने है रोका नज़रों को समेटा है हमने ख़त के पुर्जे में भी आखर मिटाया है हमने उलझ रही है सीने में कोई नज़्म मिसरा या दोहा कोरे कागज़ पर लिखा नाम मिटाया है हमने रेत का महल ले डूबा समंदर और अब बारिश की बारी है ज़ख्मों का जो सिला दिया तूने वह सिलसिला अब भी जारी है |
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जनवरी 21, 2012
दिल की तरकीब
जनवरी 12, 2012
प्रिये तुम
प्रिये तुम बस मेरी हो दुनिया से क्या डरना मुझको शाप-शब्दों का परवाह नहीं अब तुम अब नहीं अकेली हो प्रिये तुम अब मेरी हो दिनकर रजनीकर में हम तुम जग में अभिसार का संशय कुछ भी कहने दो लोगो को तुम अब मेरी सनेही हो प्रिये तुम अब मेरी हो अमृत भी भला क्या मोहे अधर-सुधा जो अमृत घोले विषपान भी कर लूं गर कह दो अपने संग जी लेने दो प्रिये तुम अब मेरी हो तुम्हारा स्पर्श संजीवन जैसा रिश्तों का गठबंधन ऐसा अमरप्रेम की इस जीवंत कथा को जग को भी कह लेने दो प्रिये तुम बस मेरी हो |
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जनवरी 05, 2012
जनवरी 02, 2012
मेरे रीतापन....
मेरे रीतापन को लेकर एकाकी जीवन है मेरा जैसे बिना कुहक चिड़ियों की निस्तब्ध वन है सारा उठ जाती हूँ रातो को सुनकर अकस्मात्, ये ध्वनि है क्या अरे! ये तो जानी पहचानी सी रूदन है मेरा पक्की दीवारों से घिरी इन कमरों की गुंजन को मन की कच्ची दीवारें भी सुनता नहीं इस धड़कन को डायरी के पन्ने सारे भर गए तेरे यादों से नीदों से तो टूटा नाता जुड़ गया नाता तारों से चंद सवाल रह जाते मन में कब तक इस रीता मन को लेकर चलती रहूँ मै साथ दिन ज़िन्दगी के कम है जो |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...