ये जो आंधी है चली ,सड़क -सड़क गली गली चुनाव पर्व है जो ये ,चेहरे लगे भली भली कर्म उनके जांच लो, मंसूबे क्या है जान लो सोचे हित जो जन की उसको वोट देना ठान लो लालच में अब न आयेगे ,बटन उसीपर दबायेंगे सुराज लाये पांच बरस,अब न हम पछतायेंगे डगर है ये बहुत कठिन ,चुनाव करना भी कठिन चुने जिसे हम अबकी बार,होवे न उससे शर्मसार आओ मिलकर वोट दे , लोकतंत्र विजय करे निशाँ अंगूठे की अपने देशहित में भेंट दे |
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फ़रवरी 26, 2012
चुनाव पर्व
फ़रवरी 12, 2012
मुझमे क्या कुछ....
मुझमे क्या कुछ बाकी है जीवन ये एकाकी है पवन नदी औ ' निर्जन वन ये मुझको पास बुलाती है मृदु-मृदु ये लहरे बहती मंद-मंद सी पवन ये कहती विचलित होना न रे ! नर तू जीवन अवश्यम्भावी है क्या मुझमे कुछ बाकी है ? व्यर्थ ये जीवन कहूं न कैसे ? व्यर्थ ये साँसे तजूं न क्यों मै ? किसी के मन को भाया मै नहीं उर में भरा ये रूदन है फिर भी मुझमे कुछ बाकी है ! आशाओं को सींचूं फिर भी भाग्य - पुष्प को खिलाऊँ फिर भी काल-विजय का सपना देखूं जीवन को जीवंत करना है अरे! जीवन में सब कुछ बाकी है । |
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फ़रवरी 08, 2012
फ़रवरी 03, 2012
नूतन मनहरण....
नूतन मनहरण किरण से त्रिभुवन को जगा दो निहारूं तुम्हारे आँखों पर आये अपार करुणा को नमन है निखिल चितचारिणी धरित्री को जो नित्य नृत्य करे -- नुपुर की ध्वनि को जगा दो तुम्हे पूजूं हे देव-देवी कृपा दृष्टि रख दो रागिनी की ध्वनी बजे आकाश नाद से भर दो इस मन को निवेदित करूं मै तुम्हारे चरणों पर प्रेम-रूप से भरी धरनी की पूजा मै कर लूं |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...