चाँद फिर चुपके से निकला धीरे-धीरे बढती आभा फूल मधुवन में फैले खुशबू गीत कोई गए आ ssss मन वीणा के तार बज उठे स्वर में है जादू लहराया पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण चहूँ ओर से क्या स्वर आया दो हृदयों का मिलन देखकर प्राण-श्वास का प्रणय देखकर अंतर्मन में आस जग उठी चाँद डूबा कब सूरज आया चिड़ियों की कलरव गूँज उठी कलियाँ भी फिर से महक उठी उषा के मृदु किरणों के संग नभ पर सूरज फिर उग आया |
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दिसंबर 24, 2011
चाँद फिर....
दिसंबर 21, 2011
मेरी कवितायें......
मेरी कवितायें है एक आह़त पक्षी सम गिरे तेरे कदमों पर हे! मेरे प्रियतम जो पक्षी है आह़त नयन - वाण से प्रिये उठा लो उसे....... धीरे से वो सब स्वच्छंद विचरण- करती थी , नील नभ पर , तुम्हारे नयन-बाण ने किया आह़त कब न जानूं पर , मृत्यु गीत विषाद से भरा पर है ये अमृत सम उदासी के साथ- साथ ये कवितायें है जीवन मम |
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दिसंबर 14, 2011
मुद्दत हुए....
मुद्दत हुए हाल-ए-दिल तुमसे बयान किये हुए फुर्सत में,तन्हाई में लम्हें ढूँढ़ते हुए इश्क-सागर की गहराई नापने चली थी मैं पर तुम मिले - गीली रेत पर कदमों के निशाँ ढूँढ़ते हुए आईने में अपना ही चेहरा पराया सा नज़र आया चंद भींगे लम्हों को मैंने तकिये में है दबाया मुद्दत हुई चाँद से चंद बातें किये हुए तारों की सरजमीं पे रौशनी से नहाते हुए |
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दिसंबर 08, 2011
ईमान क्यों है गड़बड़ाया
ईमान क्यों है गड़बड़ाया तेरी सूरत देखकर किताब में रक्खे फूल भी ताजगी दे गयी महककर दिल-ए-दास्ताँ जो कभी बंद थी किताब में शोखियाँ और बांकपन सब छुप गया था नकाब में फिर क्यों ले जाए हमें बहारों के शबाब में सुर फिर से क्यों बजे सुरीली रबाब में क्यों फिर से ज़िन्दगी के कैनवस में रंग दिख गये क्यों फिर से सूखे गुलाब किताबों के बीच महक गये ईमान फिर से गड़बड़ाया तेरी सूरत देखकर फिर से क्यों सूखे फूल ताजगी दे गयी महककर |
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दिसंबर 03, 2011
तुम्हारी साँसों की..
तुम्हारी साँसों की खुशबू से महका मधुमास इस आँगन में पहले कभी न महका था यूं हवा इस गीले सावन में फूलों में भी ये मादकता दिखी न कभी इस बगिया में मन भी कभी न भटका ऐसे फूलों वाली मौसम में सूनी सी इस जीवन में जो था रीतापन खारापन मौसम परिवर्तन ने जैसे अनायास भर दिया यौवन अरुणोदय चंद्रोदय अब तो भाता है खूब इस मन को आसमान की नीलिमा भी रंगीन लगता है अब तो संध्या की इस लालिमा से भर दूं मांग ...मेरी हो तुम शायद हवा बहती हुई ये कथा कह दे सुन लेना तुम |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...