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सितंबर 17, 2011

आँखों के .....


आँखों के सुरीले सपनो को 
यूं ही न बहने दो 
नींदों में बसते है सपने 
नींदों को यूं न उड़ने दो 

ज़मीन पे उतारो उन-
सपनों को ज़रा हौले से 
वक्त से मुखातिब हूँ मैं 
सपनों के मचलने से 

समय के गिरेबां में 
बाँधा था जिन लम्हों को 
तेरे ही पैरों के निशां
है उन लमही ख्वाबों पर 

तेरे कदमों के निशाँ 
मैं ढूँढता रहा हवाओं में 
ज़मीं पे,फलक पे,
गुलशन पे फिजाओं पे 

मिला वो- कहीं समय 
से परे जाकर , क्षितिज में 
छुपी थी वो समय के 
स्नेहिल आगोश में 

कभी अपनी आँखों से 
मेरे आँखों की भाषा पढ़ 
हकीकत को सपनों की 
तहज़ीब से ओढ़कर 

मेरे पलकों के नीचे भी 
उनींदे ख्वाब पलते है 
सुना वो अक्स भी 
तेरे  चहरे से मिलते है 

अब इन सुरीले सपनों को-
बहने मत दिया करो 
हो सकता है बह जाए 
मेरा अक्स...रहने दिया करो




सितंबर 13, 2011

जाने क्यों...




जाने क्यों ये
दिल रोता है ,
जीवन में सब
 कुछ धोखा है, 
चुपके से आना
दिल में समाना-
महकती पवन
 का झोंका है |

अनजान पल जो
 ढल गए कल,
रंग बदल मन-
 को गए छल,
वक्त के साथ
 रहे है गल,
बेवफाई ये
 अपनों का है |

राह वही,
वही है सफ़र ,
तेरा साथ 
नहीं है मगर ,
बिन तेरे- 
मेरे हमसफ़र 
टूटा सपनों का
 झरोखा है 

जाने क्यों ये
 दिल रोता है ,
जीवन में सब कुछ
 धोखा है, 





सितंबर 06, 2011

गुज़ारिश


रास्तों पर चौराहों पर
ये फटे पुराने चीथड़ों पर
ज़िन्दगी गुज़रती है जिनकी
ज़रा सुध ले लो उनकी

 जहां खाने के पड़े लाले है
जहां पैरों पे पड़े छाले हैं
जिनके किस्मत पर पड़े ताले है
ज़रा बन जाओ उनकी कुंजी

मंदिर मस्जिद जो तोड़े हैं
गावों शहरों में बम फोड़े हैं
प्राणों पर संकट जो डाले हैं
ज़रा ले लो खबर उनकी




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