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अगस्त 28, 2011

आज न गुनगुनाओ ....



आज न गुनगुनाओ  कोई प्रेम गीत 
न करो दिल-विल की बातें 
सुन लो तुम जन-जन की पुकार 
धरती पुकारे फैलाकर बांहे


आज कोई रूदन न हो निष्फल 
तोड़ो मन में बसे स्वार्थ का बंधन 
मन की खिड़की खोलो इतना 
सुनाई दे जग की व्यथा औ' क्रंदन 


धूलि धरती का बनाकर चन्दन 
लगा लो माथे पर हे वीर नंदन 


दीया तक न जल पाया जिनके घरो में 
वर्जित है अन्न से शिशु जिन घरों में 
सावन बीता पर मिला नहीं जिसे आश्रय 
दिन-रात कटे फुटपात पर - दारूण भय 


रे मन उनमे भी तुम ही हो बसे 
अपने कन्धों पर उठालो भार उनके 
आज न गुनगुनाओ  कोई प्रेम गीत 
न करो दिल-विल की बातें 



अगस्त 27, 2011

नदी में ज्वार.....

नदी में ज्वार आया
पर तुम आये कहाँ
खिडकी दरवाजा खुला है
पर तुम दिखे कहाँ
पेड़ों की डालियों पर
मुझे देख कोयल कूके
पर आज भी तुम दिखे नही
आखिर तुम हो कहाँ
सजी-धजी मंदिर जाऊं
पूजा करूँ सजदा करूँ
कभी तो पसीजोगे तुम
गर दिख जाओ मुझे यहाँ
लोग मुझे देख हँसे
दीवानी लोग मुझे कहे
अश्रु के सैलाब से
भर गया ये जहां



नजरुल कविता से अनुदित 

अगस्त 26, 2011

सुन लो ..........


सुन लो नभ क्या कहता है
धरती में पडा सन्नाटा  है,
असंख्य तारों की बातें
कोई नहीं सुन पाता है


व्यथा है इनकी भी- सुध  लो
आती रोशनाई को धर लो
हो सकता है धरती  की कोई
व्यथा है कहती  है-सुन लो


ऊपर  गगन है नीचे जन
भ्रष्ट तंत्र  -भूखे  जन-गण
नेताओं की लूट कथा को
बांच  रही नभ कर-कर वर्णन


 जन-जन अब  होकर जागृत
करने  न देंगे ...कुकृत्य
बरसेगा  घनघोर घटा
भर भर लेकर  बूँद अमृत






अगस्त 24, 2011

घोर घनघटा............

डूबा दिन ढल गयी शाम ,रोक न पाऊँ मैं
आकाश सज गए तारों से ,कदम बढाऊँ मै

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घोर घनघटा नहीं चांदनी , न रोशनी तारों की
उतावला मन बिखरा पल , उठे मन में विचारें भी

न हो ये शाम रात बदनाम , दिल बरबस तनहा
मन बेचैन...सगरी रैन कब होवे सुबहा

जाने क्या दिन का राज़ , उत्फुल्ल है मन
रोशन है जग सारा ,हुआ मन रोशन



अगस्त 23, 2011

कविता रच डाली............

Storm Watchआसमान में बादल छाया
छुप गया सूरज शीतल छाया
मेरे इस उद्वेलित मन ने
          कविता रच डाली

ठंडी हवा का झोंका आया
कारी बदरी मन भरमाया
मन-मयूर ने पंख फैलाकर
                                                         कविता रच डाली

गीली मिटटी की खुश्बू से
श्यामल-श्यामल सी धरती से
मन के अन्दर गीत जागा और
            कविता रच डाली

ये धरती ये कारी बदरी
मन को भरमाती ये नगरी
उद्वेलित कर गयी इस मन को और मैंने
                        कविता रच डाली

अगस्त 17, 2011

दिल दीवाना


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मैं हूँ और मेरे साथ है मेरा दिल दीवाना
ये भी जालिम कभी  कभी बनता बेगाना


साकिओं मैंखानो में बस तू ही तू है
ख़्वाबों की जहां में भी तेरी आरज़ू है


इस कमबख्त दिल को तूने लूट लिया
रिश्ता  तुमने मुझसे आखिर जोड़ लिया


जाने किस घडी में मैं जो बना दीवाना
तुमने भी उस घडी से नाता जोड़ लिया


अब इस जालिम दिल पर मेरा बस नहीं चलता
तेरा मेरा रिश्ता जाहिर हो ही गया





अगस्त 15, 2011

वन्दे मातरम्।

वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।

सप्तकोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
द्विसप्तकोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
अबला केनो माँ एतो बॉले (के बॉले माँ तुमि अबले),
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।

तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>

अगस्त 14, 2011

हे कवि बजाओ...

स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य पर प्रस्तुत है मेरी ये  कविता 

हे कवि बजाओ मन वीणा 
छेड़ो तुम जीवन के तान 
शब्द शिखर पर आसीन हो तुम
छेड़ो तुम जन-जन का गान 

गीत छेड़ो स्वतन्त्रता के
झूठ छल-कपट का हो अवसान 
सत्य अहिंसा ईमान का
जग में करना है उत्थान 

मौन रह गए गर तुम कविवर 
छेड़ेगा कौन सत्य अभियान 
कलम को हथियार बनाकर 
करो जन-जन का आहवान

उठो -जागो लड़ो-मरो 
करो देश के लिए बलिदान 
कवि तुम चुप न रहो -कह दो 
सत्य राह हो सबका ध्यान

अगस्त 09, 2011

चुप-चुप है ..............

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चुप-चुप है मौन प्यार ,खिल खिल जाए बहार
जब जब होवे दीदार ,तुम बस कोई नहीं


ये क्या मौसम का हाल ,क्या है ये वक्त की चाल
क्यों है इश्क में बेहाल ,हम-तुम और कोई नहीं


कशमकश मेरे मन में,समाई हो तुम धड़कन में
टूट न जाए ये बंधन ,तेरे बगैर बस कोई नही


धरती चाँद और ये गगन ,कर दूं मैं तुझे समर्पण 
सूना था दिल का आँगन ,तुम-ही-तुम कोई नही 

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