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जून 26, 2011

ज़िन्दगी से..........


ज़िन्दगी  से बस यूं ही
 चन्द बातें हुई
 चमन में आये बहार से
 एक मुलाकात हुई

 जलते चिरागों तले
 रोशनी नहीं होती
 चिराग  तले अँधेरे में
 ज़िन्दगी दीदार हुई

 हर तरफ भीड़ है
 हर शख्स है परेशान
इस दुनिया  में ज़िन्दगी
 तू ही है तनहा खडी

जून 24, 2011

जल रही.....

जल रही है धरती 
जल रहा है गगन 
                        आग उगल रही है 
                       ज़मीं और पवन 
झुलसाती है धूप
तरसाती है पानी 
                            ये गरमी भी ना जाने 
                           लेंगी कितनी जानें
लू के थपेड़ों ने 
बरपा रखी है आग 
                         सूरज की किरणे भी 
                           जला रही है गात 
दिन गिनते पल बीते 
आस वर्षा-आगमन की 
             समय है नेह बरसने का 
             औ बुझ जाए तपन धरा की 

जून 19, 2011

स्मृतियों के दलदल में....


स्मृतियों के दलदल में
यादों के गुलशन में
सपनो के महफ़िल में
 नाम तेरा ही छुपा है


नक्षत्रों के अक्ष पर
मैंने अपने वक्ष पर
धरा ने अपने कक्ष पर
नाम तेरा ही लिखा है

सूरज के किरणों में
चंदा के चांदनी में
तारों के रोशनाई में
नाम तेरा ही रोशन है


चढ़कर समय रथ पर
फूलों से सजे पथ पर
हाथ पर हाथ धरकर
पी के संग जाना है

मुड़कर न देखूं मै
जो बढ़ाये कदम मैंने
जन्मो का बंधन है
संग संग जीना है 

जून 16, 2011

मकड़ी और मक्खी


       
             (मकडी)
धागा  बुना   अंगना में मैंने
जाल बुना कल रात मैंने 
         जाला झाड साफ़ किया है वास *
आओ ना मक्खी मेरे घर
आराम मिलेगा बैठोगे जब 
         फर्श बिछाया देखो एकदम खास *
         (मक्खी)
छोड़ छोड़ तू और मत कहना 
बातों से तेरा मन गले ना 
         काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं* 
फंस गया गर जाल के अन्दर 
कभी सुना है वो लौटा फिर 
         बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं *
           (मकड़ी)
हवादार है जाल का झूला 
चारों ओर  खिडकी है खुला 
          नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *
आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर 
सो जाओ अपने पर मोड़कर 
          भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद *
            (मक्खी)
ना चाहूँ मैं कोई झूला 
बातों में आकर गर स्वयं को भूला 
          जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *
तेरे घर नींद गर आयी 
नींद से ना कोई जग पाए 
         सर्वनाशा है वो नींद का कतरा *
             (मकड़ी)
वृथा तू क्यों विचारे इतना 
इस कमरे में आकर देख ना 
         खान-पान से भरा है ये घरबार *
आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में 
नाच-गाकर रह इस घर में 
         चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह  की तरह *
              (मक्खी)
लालच बुरी बला है जानूं 
लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं 
          झूठा लालच मुझे मत दिखा रे  *
करें क्या वो खाना खाकर 
उस भोजन को दूर से नमस्कार 
          मुझे यहाँ भोजन नही करना रे *
              (मकडी)
तेरा ये सुन्दर काला बदन 
रूप तुम्हारा सुन्दर सघन 
          सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे  *
नैनों में हजार माणिक जले 
इस इन्द्रधनुष पंख तले 
          छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे *
            (मक्खी)
मन मेरा नाचे स्फूर्ति से 
सोंचू जाऊं एक बार धीरे से 
            गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *
ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना 
जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना 
          फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली *
              (उपसंहार)
दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया 
आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया 
          दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
बातों में आकर ही लोग मर जाए 
मकड़जीवी धीरे से समाये 
           दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो * 
कवि सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद 

          

जून 14, 2011

मेरे गाँव में आना.....


मेरे गाँव में आना......................
जहां नदी इठलाती हुई कहती है
आजा पानी में तर जा
ये अमृत सी  बहती  है

मेरे घर का पता ...............
आम के पेड़ के नीचे
पुराने मंदिर के  पीछे
जहां भगवान् बसते है

मेरी शिक्षा-दीक्षा..................
किताब से बाहर
 यथार्थ के धरातल पर
बड़ों को सम्मान
पर स्वयं पर आत्मनिर्भर

मेरे मन की शक्ति ..................
अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध
आवाज़ उठाना विरोध जताना
सबको ये महसूस कराना
अपने अधिकार और कर्तव्य
पर करो चिंतन

पर मेरे गाँव के लोग ....................
बड़े भोले-भाले से
रहते है सीधे-सादे से
करते है सहज बात



जून 11, 2011

पिंजरे की चिड़िया


पिंजरे की चिड़िया थी           सोने के पिंजरे में
                 वन कि चिड़िया थी वन में
एकदिन हुआ                 दोनों का सामना
             क्या था विधाता के मन में

वन की चिड़िया कहे    सुन पंजरे की चिड़िया रे
         वन में उड़े दोनों मिलकर
पिंजरे की चिड़िया कहे        वन की चिड़िया रे
            पिंजरे में रहना बड़ा सुखकर

वन की चिड़िया कहे ना ......
   मैं पिंजरे में कैद रहूँ क्योंकर
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
     निकलूँ मैं कैसे पिंजरा तोड़कर

वन की चिड़िया गाये    पिंजरे के बाहर बैठे
          वन के मनोहर गीत
पिंजरे की चिड़िया गाये     रटाये हुए जितने
         दोहा और कविता के रीत

वन की चिड़िया कहे    पिंजरे की चिड़िया से
       गाओ तुम भी वनगीत
पिंजरे की चिड़िया कहे    सुन वन की चिड़िया रे
        कुछ दोहे तुम भी लो सीख

वन की चिड़िया कहे ना ...........
     तेरे सिखाये गीत मैं ना गाऊं
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
     मैं कैसे वनगीत गाऊं

वन की चिड़िया कहे    नभ का रंग है नीला
      उड़ने में कहीं नहीं है बाधा
पिंजरे की चिड़िया कहे    पिंजरा है सुरक्षित
      रहना है सुखकर ज्यादा

वन की चिड़िया कहे   अपने को खोल दो
      बादल के बीच, फिर देखो
पिंजरे की चिड़िया कहे   अपने को बांधकर
     कोने में बैठो, फिर देखो

वन की चिड़िया कहे ना.......
     ऐसे में उड़ पाऊँ ना रे
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
     बैठूं बादल में मैं कहाँ रे

ऐसे ही दोनों पाखी    बातें करे रे मन की
     पास फिर भी ना आ पाए रे
पिंजरे के अन्दर से     स्पर्श  करे रे मुख से
         नीरव आँखे सबकुछ कहे रे

दोनों ही एक दूजे को     समझ ना पाए रे
        ना खुद को  समझा पाए रे
दोनों अकेले ही       पंख फड़फड़आये
        कातर कहे पास आओ रे 

वन की चिड़िया कहे ना............
      पिंजरे का द्वार हो जाएगा रुद्ध 
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय 
   मुझमे शक्ति नही है उडूं खुद
गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित काव्य का काव्यानुवाद 

जून 07, 2011

इन पीले पत्तों को .....


इन पीले पत्तों को 
कभी गिरते हुए 
देखा है 


सुखी पत्ती घुमती
 हुई ,धरती को 
छूतीहै 


धरती के आगोश 
में समाने को 
उत्सुक है 
Awesome Dry Leaves Art (18 pics)
क्यों न हो आखिर 
उसे खाद बनना है 


एक और पेड़ जनना है 
घोंसलों में नींव बनना है 
चिड़ियों को बचाना है 
गिलहरियों का बिछोना है 

इन पत्तियों को 
यूं ही बर्बाद 
न होने दो 


इन्हीं पत्तियों से 
धरती को आबाद 
करना है 

जून 02, 2011

याचना


the best painting in the world created by MF Hussain
मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी 
तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी 

वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंगन में 
मै पहचाना नही की तुम ही जो आती हो सपनो में 

खता मेरी बस इतनी थी की रोका था नही तुमको 
समझ मेरी न इतनी थी पकड़ लूं हाथ , भुला जग को 

पडेगा आना ही तुमको की तुम ही हो मेरी किस्मत 
भला कैसे रहोगी दूर कि तुम ही हो मेरी हिम्मत 

कि जब आयेगी हिचकी तुम समझ लेना मै आया हूँ 
तुम्हारे  सामने दर पे एक दरख्वास्त लाया हूँ 

कि संग चलकर तुम मेरी ज़िंदगी को खूब संवारोगी 
मेरे जीवन की कडवाहट को तुम अमृत बनाओगी 

पनाहों में जो आया हूँ रहम मुझ पर ज़रा करना 
अब आओ भी खडा हूँ राह पर निश्चित है संग चलना 

painting by M F HUSSAIN 


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