क्षण-भंगुर ये काया
भटकाती है माया
मन के इस भटकन से
बारम्बार छलते है
चलायमान सांसो का
गतिमान इस धड़कन का
नश्वर इस काया से
मोहभंग होना है
सावन फिर आयेगा
बदरा फिर छाएगा
ऋतुओं को आना है
आकर छा जायेगा
बदरा फिर छाएगा
ऋतुओं को आना है
आकर छा जायेगा
मन के इस पंछी को
तन के इस पिंजरे में
सहलाकर रखना है
वर्ना उड़ जायेगा
रे बंधु सुन रे सुन
नश्वर इस काया की
माया में न पड़ तू
वर्ना पछतायेगा