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सितंबर 22, 2010
मन बंजारा
मेरे इस रेगिस्तान मन में
बूँद प्यार का गर टपक जाए
रेत गीली हो जाय
दिल का दामन भर जाय
जन्मों से प्यासे इस मन को
प्यार का जो सौगात मिला
मन पंछी बन उड़ जाए
रहे न जीवन से गिला
जाने क्यों मन भटका जाय
ढूंढे किसे ये मन बंजारा
है आवारा बादल की तलाश
पाकर मन कहे 'मै हारा'
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
आवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
सितंबर 17, 2010
मनोकामना
तेरी अधरों की मुस्कान
देखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
पर तेरी वो मुस्कान
जो होंठों पर कभी कायम था
पता नहीं क्यों किस जहां में
जाकर सिमट गए
तेरी दिल की पुकार
सुनना ही मेरी चाहत है
प्यार की कशिश को पहचानो
ये दिल तुझसे आहत है
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
ज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट
सितंबर 03, 2010
रात का सूनापन
रात का सूनापन
मेरी जिन्दगी को सताए
दिन का उजाला भी
मेरे मन को भरमाये
क्यों इस जिन्दगी में
सूनापन पसर गया
खिलखिलाती ये जिन्दगी
गम में बदल गया
आना मेरी जिन्दगी में तेरा
एक नया सुबह था
वो रात भी नयी थी
वो वक्त खुशगवार था
वो हाथ पकड़ कर चलना
खिली चांदनी रात में
सुबह का रहता था इंतज़ार
मिलने की आस में
पर जाने वो हसीं पल
मुझसे क्यों छिन गया
जो थे इतने पास-पास
वो अजनबी सा बन गया
मेरे अनुरागी मन को
बैरागी बना दिया
रोग प्रेम का है ही ऐसा
कभी दिल बहल गया
कभी दिल दहल गया
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