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मार्च 31, 2010

पूरक

सुरज ने कहा यदि हम न उगें तो रत्रि कि कौन भगाए 
चन्दा ये कहे यदि मै न आऊँ कवि मन को कौन उकसाये
धरती ये कहे यदि न चलूँ तो क्या सूरज क्या चन्दा
दोनों ही है व्यर्थ बस मैं हूँ समर्थ भार लेती हूँ जन जन का
पशू – पक्षी कहे छोडो उनको उनका तो है लड़ना काम
कभी चन्द्र ग्रहण कभी सूर्य ग्रहण भूकम्प करे काम तमाम
यदि हुम न रहे सूरज न उगे चन्दा की तो क्या है बिसात
धरती की सारी सुन्दरता पर छायी है अपनी जमात

मानव ये कहे क्यों ये झगड़े कभी सुन लो हमारी भी बात
अस्तित्व तुम्हारी तभी तक है जब हुम सुने ये फ़रियाद
पेड़-पौधे कहे मुझे नष्ट न करो मानव हम पेड़ उगाये
धरती ये कहे मुझे मत बाँटो मानव फ़िर दोस्ती बढ़ाये

पशू –पक्षी कहे हमें मत मारो मानव हम उनको बचाये
हम ही तो है सबके रक्षक क्या हो यदी भक्षक बन जाये
सच तो है धरा सूरज चन्दा पशू पक्षी और हम इन्सां
सब एक दूजे के पूरक है उनमे न हो कोइ हिंसा

मार्च 28, 2010

मुहावरोक्ति



रवि के होते नौ दो ग्यारह रूचि के तो हो गए पौ बारह 
छू मंतर हो गयी दुःख सारे हुई खत्म नकली ये प्यार का खेल 


खरी खोटी सुनाया जम के रूचि गिरगिट रवि का रंग बदल गया 
उसको तो किनारा करना था वह टाल-मटोल कर निकल गया 


रूचि के दुनिया में बहार आयी आँखों का पर्दा सिमट गया 
उसे तजने को जो ठानी थी जीना उसका भी खुश्वार हुआ 


मेरी ये पंक्ति कविता नहीं ये मुहावरों का मेला है 
जो कोई गलती दिख जाये ठीक करें आप का स्वागत है 

मार्च 27, 2010

अमृतान्जल

आसमान का रंग है नीला हरी-हरी सी धरती
मटमैला है रंग ज़मीं की पर रंग नहीं है जल की

हर रंग में  यह ढल जाती है है यह बात गजब की
नष्ट न करो इस अमृत को संरक्षण कर लो जल की

पीकर घूँट अमृत की  जन-जन धन्यवाद दो इश्वर को
बेकार न हो जाये जीवन पानी को सांस समझ लो

मन की धुंदली आँखों से.........

मन की धुंदली आँखों से जाना जीवन का सच  क्या है ,
न झूठा है न सच्चा है बस अपनी धुन में बढ़ता है 

ऊपर से देखो दुनिया तो झगड़े में पड़ा है जगत सारा
मन की आँखों से देखो तो ये झगड़े  प्यार के लिये सारा

ये आतंक की दुनिया है कहने दो  उसे जो कहता है 
मैं जानू ये  आतंकी है प्यार का मारा बेचारा 




मार्च 22, 2010

जीवन का सच

इस जीवन को जाना मैने 
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
जाने सभी पर माने ना
काव्याना का सन्देश प्यारा

व्यथा यही है मेरे मन की 
न समझे लोग इशारों को
आओ व्यथा को दूर करें
और स्थान न दें बंटवारे को 

मार्च 17, 2010

save the tree

जन मानस के मानसपटल में 
यह बात हमें जगाना है,
न काटो न छेड़ो न दफनाओ 
इन पेड़ों  को हमें बचाना है


धरती के इन वरदानो को 
यूँ ही नष्ट न करो मानव 
गर्त में जाए धरती इससे 
पहले ही जाग जाओ सब 


काव्याना के बोल बचन 
सुन लो ध्यान से रे मानव 
सावधान हो जाओ वर्ना 
नष्ट होगा ये धरती सघन 

मार्च 11, 2010

man ki baat

मेरे मन की व्यथा कथा है
ये मेरा कविता का जग 
कथा व्यर्थ है व्यथा मर्त्य है 
सनातन ये दुनिया ये जग (१)

मखमली सी ज़मी धरती की
आस्मां का नीला ये बदन
स्थान कहाँ है  व्यथा कथा का
मुखरित हो सारा जीवन(2)

madhushala

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१


प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।१

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१।

श्री  श्री  हरिवंश राइ बच्चन 

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