मैं जिंदा हूँ
अन्याय का खिलाफत मैं कर नहीं पाता
कुशासन-सुशासन का फर्क समझ नहीं पाता
प्रदूषित हवा में सांस लेता हूँ
पर मैं जिंदा हूँ
सरकारी तंत्र से शोषित हूँ मैं
बिना सबूत आरोपित हूँ मैं
खुद को साबित मैं कर नहीं पाता
पर मैं जिंदा हूँ
दिल से चीत्कार उठती है
मन में हाहाकार मचती है
होंठों से कोई शब्द निकल नहीं पाता
पर मैं जिंदा हूँ
रक्त में उबाल अब भी है
भावनाओं में अंगार अब भी है
बस विद्रोह के स्वर गा नहीं पाता
पर मैं जिंदा हूँ
क्यों डरता हूँ इस झूठे तंत्र से
काश मन जागृत हो कोई मन्त्र से
नष्ट कर दूं उन कुकर्मियों का ,
एक भीड़ मैं जुटा नहीं पाता
पर मैं जिंदा हूँ