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जनवरी 28, 2011

विरह


दुःख तुमने जो दिए
   सहा न जाए
सुख मुझसे दूर भागे
   रहा न जाए

वंचित हूँ तुम्हारे प्यार से
   क्यों समझ ना आये
कटी हूँ मैं जीवन से कैसे
   कहा ना जाए

तुम्हारा वो संगसुख
   भुलाया ना जाए
वो मृदु स्पर्श प्रेम वचन
   क्यों याद आये

वो आलिंगन वो दुःख-सुख में 
   साथ का किया था वादा 
कैसे मै विस्मरण करूँ उन पलों को 
   वो स्मरण रहेंगे सदा 

तुमने अपने दायित्व  से 
   क्यों मूंह फेर लिया 
कोई गुप्त कारण है या यूं ही
   मुझे रुसवा किया 

क्यों ऐसा लगे की तुम 
   अवश्य लौटोगे 
मेरे साथ किया गया वादा 
तुम अवश्य निभाओगे 

ये जो लोग कहे की जानेवाला 
   वापस न आये कभी 
मै जानूं तुम कोई गया वक्त नही हो 
   जो लौट न पाओगे

जनवरी 26, 2011

मेरे इस रेगिस्तान.........


 मेरे इस रेगिस्तान मन में
 बूँद प्यार का गर टपक जाए
  रेत गीली हो जाय
   दिल का दामन भर जाय

    जन्मों से प्यासे इस मन को
     प्यार का जो सौगात मिला
      मन पंछी बन उड़ जाए
       रहे न जीवन से गिला

        जाने क्यों मन भटका जाय
         ढूंढे किसे ये मन बंजारा
          है आवारा बादल की तलाश
           पाकर मन कहे 'मै हारा'

             इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
              आवारापन संभल जाए
               वो बूँद बन जाए बादल का
                और इस सूखे मन में टपक जाए

जनवरी 21, 2011

चाँद.....फीका सा

कभी दिन में देखा है चाँद 
      फीका सा 
एक बुझा हुआ दीपक 
      सरीखा सा 


काश इन परिंदों सा 
      उड़ पाऊँ 
चन्दा को धरती पर 
      ले आऊँ 


मल-मल कर चमकाऊँ 
      बुझे तन को 
खिली चांदनी से पावन 
      करे जग को 


जाने क्यों सोचे ये 
    पागल मन 
रिश्ता है चन्दा से 
  शायद कोई पुरातन 

जनवरी 20, 2011

मेरी गली से...........


मेरी गली से जब भी गुजरीं वो
खुशबू का सैलाब सा बह गया
रूह तक पहुंची वो खुशबू-ए-उल्फत
मुहब्बत का तकाजा बढ़ गया
दिल के दामन में आकर
धूम मचाकर रख दिया
सपनो में भी चैन न आया
वो आयी और मै दीवाना हो गया
इश्क जब सर पर चढ़ा
वो बेवफा चिड़िया सी फुर्र हुई
अब तो ये हाल है जानम
मालूम नहीं कब दिन हुआ कब रात हुई

जनवरी 13, 2011

हमने तो आलने .......


हमने तो आलने में दिए है जलाए
ये फिर आँखों से धुआं क्यों उठा
हमने तो बागों में फूल है खिलाये
ये फिर फूलों का रंग क्यों उड़ा

जागते हम रात से सुबह तलक
फिर भी नींद का खुमार क्यों न चढ़ा
रैन तो रात भर जलता रहा
पर नैनो ने रात भर ख्वाब न बुना

हम तो तारों पर है चलते रहे
चुभते हुए पैरों को सहते रहे
अपने इन हाथों से सपनो को बुना
फिर भी जामा ख्वाब का पहना नपाया 

जिन्दगी गर्दिश में बने रहेंगे
ऐसे तो हमने दाने नहीं बोये
पता है जिन्दगी संवर जायेगी
ऐसा कुछ हमने यथार्थ में है पिरोया

जनवरी 12, 2011

मै नारी हूँ ..

अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
मै नारी हूँ ....
अस्मिता को बचाते  हुए 
धरती में समा जाती हूँ 
माँ- बहन इन शब्दों में 
ये कैसा कटुता 
है भर गया 
इन शब्दों में अपशब्दों के 
बोझ ढोते जाती हूँ 
पत्नी-बहू के रिश्तो में 
उलझती चली जाती हूँ 
अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
अपने गर्भ से जिस संतान को 
मैंने है जन्म दिया 
अपनी इच्छाओं की आहुति देकर 
जिसकी कामनाओं को पूर्ण किया 
आज उस संतान के समक्ष 
विवश हुई जाती हूँ 
अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
नारी हूँ पर अबला नही 
सृष्टि की जननी हूँ मै 
पर इस मन का क्या करूँ 
अपने से उत्पन्न सृष्टि के सम्मुख 
अस्तित्व छोडती जाती हूँ 

जनवरी 06, 2011

यारा लगा मन...........


 ..
यारा लगा मन फकीरी में 
न डर खोने का 
न खुशी कुछ पाने का 
ये जहां है अपना 
बीते न दिन गरीबी में 

यारा लगा मन फकीरी में 

जब से लागी लगन उस रब से 
मन बैरागी सा हो गया 
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को 
ये फकीरा काफ़िर बन गया 

मन फकीरा ये जान न पाए 
आखिर उसे जाना है कहाँ 
रब दे वास्ते ढूंडन लागी 
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ 

क्या करूँ कुछ समझ न आये 
उस रब दे मिलने के वास्ते 
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने 
गली,कूचे और रास्ते 

जाने कब जुड़ेगा नाता 
और ये फकीर तर जावेगा 
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते 
रब ये मिलन कब करवावेगा
 ..

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