अगस्त 28, 2011

आज न गुनगुनाओ ....



आज न गुनगुनाओ  कोई प्रेम गीत 
न करो दिल-विल की बातें 
सुन लो तुम जन-जन की पुकार 
धरती पुकारे फैलाकर बांहे


आज कोई रूदन न हो निष्फल 
तोड़ो मन में बसे स्वार्थ का बंधन 
मन की खिड़की खोलो इतना 
सुनाई दे जग की व्यथा औ' क्रंदन 


धूलि धरती का बनाकर चन्दन 
लगा लो माथे पर हे वीर नंदन 


दीया तक न जल पाया जिनके घरो में 
वर्जित है अन्न से शिशु जिन घरों में 
सावन बीता पर मिला नहीं जिसे आश्रय 
दिन-रात कटे फुटपात पर - दारूण भय 


रे मन उनमे भी तुम ही हो बसे 
अपने कन्धों पर उठालो भार उनके 
आज न गुनगुनाओ  कोई प्रेम गीत 
न करो दिल-विल की बातें 



7 टिप्‍पणियां:

  1. मन को छू लेने वाली रचना...

    मेरे ब्लॉग्स पर भी आपका स्वागत है -
    http://ghazalyatra.blogspot.com/
    http://varshasingh1.blogspot.com/

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  2. गहन अनुभूतियों को शब्दों में सहजता से उतारा है अनु जी आपने बधाई

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  3. बहुत सुन्दर ! बेहतरीन प्रस्तुती !
    आपको एवं आपके परिवार को ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  4. मन को छू लेने वाली सुन्दर रचना..

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