जुलाई 30, 2011

न जाने दिन.......


न जाने दिन कैसे बीतेंगे बरसात के 
भीगे दिन रात और नम हैं पलके 

आँखों में धुएं से सपने 
ख्वाबों ने रात  है बुझाये 
सुलगती है आंसू नयन में 
बारिश है आग लगाती 

न जाने दिन कैसे बीतेंगे बरसात के 
भीगे दिन रात और नाम ही पलके 
तुझे दिल याद करती है 
छलका के नीर  नयनों में 
गिले शिकवे भुलाकर दिल 
संजोये ख्वाब पलकों में 

ग़म में डूबा इस दिल को 
बूंदों ने उबारा है 
बारिश की नेह-बूंदों से 
सपनों को सजाया है 

सपनो को हकीक़त से 
सींचने तुम आओगे 
कांच की इन बूंदों से 
बगिया ये महकाओगे 


रिश्तों को जी लेने दो 
बस नाम का रिश्ता नहीं 
आ जाओ इस सावन में 
रिश्तों को नाम दे दो 



13 टिप्‍पणियां:

  1. सपनो को हकीक़त से
    सींचने तुम आओगे
    कांच की इन बूंदों से
    बगिया ये महकाओगे

    कांच की बूंद...वाह,यह प्रतीक अच्छा लगा।
    एक सुंदर और प्रभावशाली रचना के लिए धन्यवाद।

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  2. सुंदर रचना ,सावन की खुशबू के साथ

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  3. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना!उम्दा प्रस्तुती!

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  4. ग़म में डूबा इस दिल को
    बूंदों ने उबारा है
    बारिश की नेह-बूंदों से
    सपनों को सजाया है

    अहसासों की खुबसूरत अभिव्यक्ति ....!

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  5. जितनी मोहक तश्वीर उतना दिलकश अदांज।

    तुझे दिल याद करती है...तुझे दिल याद करता है
    ग़म में डूबा... ग़म में डूबे

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