दिसंबर 09, 2010

ब्लॉग-ए-आम........



 

दिन ढला शाम हुई 
चिड़ियों की कुहक 
वीरान हुई 

दिन ने रात को 
गले लगाया 
सांझ का ये नज़ारा 
आम हुई 

पेड़ों की झुरमुटों से 
चांदनी की छटा
दीदार हुई 

तारों की अधपकी रोशनी 
आसमां की ज़मी पे 
मेहरबान हुई 

ये तो रोज़ का नज़ारा है 
जाने क्यों लिखने को 
बेचैन हुई 

चलो आखिर इस बहाने 
मेरी ये कविता 
ब्लॉग-ए-आम हुई  

9 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ अलग-सा फ़ॉर्मेट अपनाकर आपकी यह भावाभिव्यक्ति सुंदर रचना का शक्ल अख़्तियार की है।

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  2. बातेँ भले ही रोज की हो मगर आपने इसे खूबसुरत कविता का जो आकार दे दिया है।

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  3. अलग अन्दाज़ की सुन्दर कविता।

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  4. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई।

    "सांझ का नज़ारा आम हुई" वाली पंक्ति में मुझे व्याकरण दोष लग रहा है , देख लें।

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  5. वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!

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  6. अति सुन्‍दर
    आना जी आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है !

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